मार्केट शुरू होते ही पहले घंटे मे हुआ निवेशकों का लगभग 10 लाख करोड का नुकसान ।
भारतीय स्टॉक मार्केट इंडेक्स, सेंसेक्स और निफ्टी 50, सोमवार, 5 अगस्त को शुरुआती कारोबार में 3 प्रतिशत तक गिर गए। यह गिरावट वैश्विक ट्रेंड के चलते हुई, जब अमेरिका में मंदी के डर बढ़े और मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव ने निवेशकों को चिंतित कर दिया।
सेंसेक्स में व्यापक रूप से बिकवाली देखी गई। सेंसेक्स 78,588.19 पर खुला, जो इसके पिछले बंद स्तर 80,981.95 से कम था, और जल्द ही 3 प्रतिशत गिरकर 78,580.46 के स्तर पर आ गया। दूसरी ओर, निफ्टी 50 24,302.85 पर खुला, जो इसके पिछले बंद स्तर 24,717.70 से कम था, और 2 प्रतिशत से अधिक गिरकर 24,192.50 के स्तर पर आ गया।
सुबह 9:45 बजे के आसपास, बीएसई सेंसेक्स 1.90 प्रतिशत की गिरावट के साथ 79,442 पर था, जबकि निफ्टी 50 2 प्रतिशत की गिरावट के साथ 24,232 पर था। बीएसई मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांक भी 2 प्रतिशत से अधिक की गिरावट में थे।
गिरावट के प्रमुख कारण:
- अमेरिकी मंदी का डर:
- कमजोर आर्थिक डेटा: जुलाई में अमेरिकी बेरोजगारी दर 4.3 प्रतिशत तक बढ़ गई, जो जून में 4.1 प्रतिशत थी। यह पिछले तीन सालों में सबसे ऊंची दर है।
- मंदी की संभावनाएं: गोल्डमैन सैक्स ने अगले 12 महीनों में अमेरिकी मंदी की संभावना को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया है। मंदी की आशंका से यूएस फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना भी बढ़ गई है।
- मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव:
- ईरान और इज़राइल: इज़राइल ने हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनिया को मार डाला है, जिसके बाद ईरान ने बदला लेने की कसम खाई है। यह तनाव बढ़ते युद्ध की संभावना को जन्म दे सकता है, जिससे वैश्विक बाजार प्रभावित हो रहे हैं।
- उच्च मूल्यांकन:
- भारतीय शेयर बाजार का मूल्यांकन उच्च स्तर पर है। निफ्टी 50 का पीई (प्राइस टू अर्निंग्स) अनुपात 23.1 है, जो पिछले दो साल के औसत 21.9 से अधिक है। इसी तरह, पीबी (प्राइस टू बुक) अनुपात 4.17 है, जो पिछले दो साल के औसत 4.09 से अधिक है।
- अप्रभावी Q1 परिणाम:
- भारतीय कंपनियों के जून तिमाही (Q1FY25) के परिणाम मिलेजुले रहे हैं। उच्च मूल्यांकन के बावजूद, कमाई में वृद्धि धीमी हो गई है, जिससे बाजार में मुनाफावसूली का दौर शुरू हो गया है।
ये सभी कारक मिलकर बाजार में अस्थिरता और बिकवाली का कारण बने हैं, जिससे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ है।
- सेंसेक्स:
- खुला: 78,588.19 (पिछला बंद: 80,981.95)
- गिरावट: 3 प्रतिशत गिरकर 78,580.46 पर
- 9:45 बजे: 1.90 प्रतिशत की गिरावट के साथ 79,442 पर
- निफ्टी 50:
- खुला: 24,302.85 (पिछला बंद: 24,717.70)
- गिरावट: 2 प्रतिशत गिरकर 24,192.50 पर
- 9:45 बजे: 2 प्रतिशत की गिरावट के साथ 24,232 पर
- बीएसई मिडकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स: 2 प्रतिशत से अधिक की गिरावट
मार्केट कैपिटलाइजेशन में प्रभाव:
- पिछला सत्र: ₹457 लाख करोड़
- वर्तमान सत्र: ₹447 लाख करोड़
- नुकसान: एक घंटे में लगभग ₹10 लाख करोड़ का नुकसान
भारतीय स्टॉक मार्केट पर प्रभाव डालने वाले पांच प्रमुख कारक
- अमेरिका में मंदी का डर
- बेरोजगारी में वृद्धि: जुलाई में अमेरिका की बेरोजगारी दर 4.3 प्रतिशत (जून में 4.1 प्रतिशत) हो गई।
- नौकरी सृजन में गिरावट: अमेरिका में नौकरी सृजन में कमी।
- मंदी की संभावना: गोल्डमैन सैक्स ने अगले 12 महीनों में अमेरिका में मंदी की संभावना 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दी है।
- ब्याज दर कटौती की संभावना: विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल यूएस फेड ब्याज दरों में कटौती कर सकता है।
- मध्य पूर्व में बढ़ता तनाव
- संघर्ष: इजराइल द्वारा हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनियेह की हत्या के बाद ईरान ने बदला लेने की धमकी दी है।
- युद्ध का डर: दोनों पक्षों की बढ़ती धमकियों और कार्रवाइयों के चलते युद्ध का खतरा बढ़ गया है, और अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है।
- उच्च मूल्यांकन
- भारतीय स्टॉक मार्केट का उच्च मूल्यांकन: विशेषज्ञों का कहना है कि मार्केट में स्वस्थ सुधार की जरूरत है।
- पीई अनुपात: निफ्टी 50 का वर्तमान पीई अनुपात 23.1 है, जो दो साल के औसत 21.9 से अधिक है।
- पीबी अनुपात: निफ्टी 50 का पीबी अनुपात 4.17 है, जो दो साल के औसत 4.09 से थोड़ा अधिक है।
कमजोर वैश्विक संकेतकों का मतलब है कि प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं से आने वाले नकारात्मक आर्थिक संकेत जो विश्वभर के निवेशकों की भावनाओं को प्रभावित करते हैं। दो महत्वपूर्ण उदाहरण अमेरिका और जापान से हैं:
अमेरिका:
• कमजोर आर्थिक डेटा: हाल की रिपोर्टों में दिखाया गया है कि अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र सिकुड़ गया है, जिसमें ISM मैन्युफैक्चरिंग PMI 46.8 तक गिर गया है, जो नवंबर के बाद सबसे कम स्तर है। PMI का 50 से नीचे होना संकुचन को इंगित करता है, जिससे मंदी का डर बढ़ गया है।
• मंदी की चिंताएं: इस संकुचन ने वैश्विक बाजारों को अस्थिर कर दिया है, जिसमें भारत भी शामिल है, क्योंकि निवेशकों को अमेरिकी आर्थिक मंदी के व्यापक प्रभावों की चिंता है, जो वैश्विक आर्थिक वृद्धि को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है ।
• आर्थिक वृद्धि में कमी: जापान में आर्थिक वृद्धि की गति धीमी हो गई है, जिसमें औद्योगिक उत्पादन और उपभोक्ता खर्च में कमी देखी गई है। एक प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था में यह मंदी कुल मिलाकर आर्थिक अनिश्चितता को बढ़ा देती है
• निर्यात और निवेश पर प्रभाव: वैश्विक व्यापार में एक प्रमुख खिलाड़ी होने के नाते, जापान की आर्थिक चुनौतियाँ और व्यापार गतिशीलता को बाधित कर सकती हैं, जो भारत जैसे बाजारों को प्रभावित करती हैं जो इन प्रणालियों में निकटता से एकीकृत हैं
ये कमजोर वैश्विक संकेतक एक तरंग प्रभाव पैदा करते हैं, जिससे बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ जाता है और निवेशकों में सतर्कता की भावना बढ़ जाती है, जिससे वैश्विक और भारतीय बाजारों में बिकवाली होती है।
सारांश
भारतीय स्टॉक मार्केट में बड़ी गिरावट देखी गई, जो अमेरिका में मंदी के डर और मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के कारण हुई। सेंसेक्स और निफ्टी 50 में महत्वपूर्ण गिरावट आई, और कुल मार्केट कैपिटलाइजेशन में भारी कमी आई। उच्च मूल्यांकन के कारण मार्केट में सुधार की संभावना है।